डिबाई क्षेत्र के कर्णवास में स्थित सरकारी पशु अस्पताल इन दिनों अपनी बदहाली की कहानी खुद बयां कर रहा है। कभी किसानों और पशुपालकों के लिए बड़ी उम्मीद के रूप में बनाया गया यह अस्पताल आज वीरान पड़ा है। स्थिति यह है कि अस्पताल में न डॉक्टर बैठते हैं और न ही कोई चिकित्सा व्यवस्था सुचारु रूप से संचालित होती है। इस लापरवाही का खामियाजा सीधे तौर पर उन किसानों को भुगतना पड़ रहा है, जिनकी दैनिक आय का बड़ा हिस्सा पशुपालन पर निर्भर है। कर्णवास ही नहीं, बल्कि आसपास के कई गाँव — जैसे कि नगला, तलबार, उदयपुर, हीरापुर, गोसमी, गंगापुर, बिलौना आदि इसी अस्पताल पर निर्भर रहते हैं। लेकिन अस्पताल में नियमित डॉक्टरों की अनुपस्थिति और इलाज की सुविधाओं के अभाव के कारण ग्रामीणों को अपने बीमार या घायल पशुओं का उपचार कराने के लिए मजबूरी में दूर-दराज के शहरों का रुख करना पड़ता है। कई बार गंभीर स्थिति में पशुओं को ले जाना किसानों के लिए समय और पैसे दोनों की बर्बादी साबित होता है। कई मामलों में समय पर उपचार न मिलने से दुधारू पशुओं की मृत्यु भी हो जाती है, जिससे किसानों की आर्थिक स्थिति पर गहरा असर पड़ता है। ग्रामीणों का कहना है कि अस्पताल में न तो दवाई मिलती है और न ही किसी प्रकार के टीकाकरण की व्यवस्था है। गर्मी, सर्दी या बरसात — किसी भी मौसम में डॉक्टर की मौजूदगी न के बराबर रहती है। पशुपालक बताते हैं कि अस्पताल का मुख्य भवन जर्जर हालत में है,
और प्राथमिक उपचार के उपकरण तक उपलब्ध नहीं हैं। कई बार किसानों ने फोन करके डॉक्टर को बुलाने की कोशिश की, लेकिन कॉल उठाने वाला तक कोई नहीं मिलता। इस लापरवाही का सबसे बड़ा असर क्षेत्र में घूम रहे बेसहारा गोवंश पर पड़ रहा है। आए दिन सड़क किनारे या खेतों में घायल अवस्था में गाय-बछड़े दिखाई देते हैं। दुर्घटना या बीमारी के कारण गंभीर रूप से घायल गोवंश को तत्काल चिकित्सा सहायता की आवश्यकता होती है, लेकिन अस्पताल बंद होने और डॉक्टर न मिलने के कारण उनकी जान जोखिम में पड़ी रहती है। कई बार गोसेवक और ग्रामीण मिलकर स्वयं ही घायल पशुओं की देखभाल करते हैं, लेकिन उचित चिकित्सीय सुविधा के अभाव में उनका उपचार अधूरा रह जाता है।
स्थानीय पशुपालकों का कहना है कि सरकार पशुपालन को बढ़ावा देने के लिए तो बड़ी-बड़ी योजनाएँ चलाती है, लेकिन जमीनी स्तर पर उनकी स्थिति बेहद लचर है। पशु अस्पताल का वर्षों से इसी तरह वीरान रहना प्रशासनिक उदासीनता को दिखाता है। यदि अस्पताल सुचारु रूप से कार्य करे, डॉक्टर नियमित बैठें और दवाइयाँ उपलब्ध हों, तो क्षेत्र के हजारों पशुपालक परिवारों को बड़ी राहत मिल सकती है।
ग्रामीणों ने सामूहिक रूप से जिला प्रशासन और पशुपालन विभाग से मांग की है कि तत्काल अस्पताल में डॉक्टर और स्टाफ की नियुक्ति की जाए, दवाइयों का पर्याप्त प्रबंध किया जाए और अस्पताल को नियमित रूप से खुलवाया जाए। उनका कहना है कि पशुपालन केवल उनका व्यवसाय ही नहीं, बल्कि उनकी आजीविका का आधार है, और पशु अस्पताल का बंद रहना सीधे तौर पर उनकी आर्थिक स्थिरता पर प्रहार है। कर्णवास का यह पशु अस्पताल आज पुनर्जीवन की मांग कर रहा है। ग्रामीणों की उम्मीद प्रशासनिक सुधारों पर टिकी हुई है। यदि समय रहते कदम नहीं उठाए गए, तो पशुपालकों की परेशानियाँ और बढ़ेंगी, और बेसहारा पशुओं की स्थिति और अधिक दयनीय हो जाएगी। पशुपालक किसानों की वर्षों से चली आ रही इस समस्या पर अब प्रशासन क्या कदम उठाता है, यह आने वाला समय ही बताएगा।






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