राहुल लोधी की कलम से, अक्सर हम हर जगह,हर नए पुराने स्थानों पर,घर में या घर के बाहर ,शहर में समाज में एक बात जरूर सुनते हैं कि पैसा ही सबकुछ है,पैसा कमाओ और मौज पाओ तो मैं इस पैसे पर ही यह लिख रहा हूं और अपना अनुभव भी आपके समक्ष साझा कर रहा हूं कि आखिर पैसा ही सबकुछ क्यों है ? तो चलते हैं इस नए अनुभव की ओर एक नए सभी के मन में उठने वाले प्रश्न की ओर इसको एक कहानी के रूप में आप सभी के सामने प्रस्तुत किया गया गया है जहां बहुत सारे अनुभवों को लेकर एक कहानी बनाई गई है |
नया शहर और पैसा


जब हम छोटे छोटे थे तो एक बड़ा सा स्वप्न मन में लेकर बैठे रहते थे कि हम बड़े हो जाएंगे तो बड़े शहरों में पढ़ने जायेंगे बड़े बड़े शहरों में देखेंगे कि कैसा वहां का जीवन होता है बहुत सारी कहानियां सुनी थी बाहर के जीवन की इंटरमीडिएट पास करके हम लोग बाहर की ओर कदम रखने लगे और नई जगह एडमिशन भी लिया लेकिन ये किया देखने मिल की एडमिशन लेने के बाद पहले पूरी फीस जमा करा ली गई उसके बाद ही कुछ मतलब सबसे पहले पैसा जमा कराया उसके बाद कुछ हो पाएगा,चलिए ये तो स्कूल,कोचिंग,कॉलेज की बाते हैं यहां तो ये सब करना ही होता है लेकिन फिर जब बात आती है कहीं रुकने की जहां से रोज आवागमन किया जा सके मतलब कहीं पर रुक कर पढ़ाई की जा सके तो ढूंढने लगे आशियाना ठहरने का लेकिन एक कहावत है कि ढूंढने से तो भगवान भी मिल जाते हैं तो मिल गया वो कमरा भी जहां रुकना था लेकिन मैं खड़े खड़े देख ही रहा था कि पापा पैसे गिन रहे थे और जब तक वहां रहेंगे तब तक के पैसे उन्होंने दे दिए थे लेकिन मैं वहां खड़े खड़े सबकुछ देख रहा था कि आखिर क्या चल रहा है ? वक्त बीता वे सब भी चले गए अब मेरे पास पैसे थे जो वे लोग देकर गए थे ,शाम हुई खाने का समय हुआ मै सब्जी लेने गया पैसे दिए,डाल लाया पैसे दिए,दूध लाया पैसे दिए,चाय लाया पैसे दिए,जो भी कुछ लाया सभी के पैसे दिए किसी ने एक रुपया भी नहीं छोड़ा,फिर कॉलेज जाना था सुबह उठा तैयार हुआ कॉलेज के रवाना हुआ बस में बैठा पैसे दिए,कॉलेज में कुछ खरीदना था तो पैसे दिए अब इतना पैसा खर्च हो चुका था कि मेरे पास न पैसा था न कुछ ही बचा घर जाना था किराए के लिए पैसे नहीं मतलब घर नहीं पहुंच सकता था,सामान खरीदना था पैसे खत्म वो भी नहीं खरीद सकता था,वो तो छोड़िए जनाब बहुत तेज शौच लगी थी पैसे नहीं थे अब क्या ही क्या जाए बाहर की दुनिया तो बिन पैसा के चल ही नहीं रही क्या होगा अब हम समझते थे कि यूंही है सबकुछ लोग मदद भी कर देते हैं लेकिन कब तक लोग एक दूसरे की मदद करेंगे क्योंकि उन्हें भी पता है कि यदि वे मदद ही करते रहेंगे तो खुद गरीब बन जाएंगे इसलिए वे भी मदद नहीं करना चाहते इस पूरी बात का एक ही निष्कर्ष है कि पैसा है तो सबकुछ है वरना भूखे ही मरते रहों आज के इस युग में यह युग बिन पैसों के चल ही नहीं सकता क्योंकि सभी चीजें पैसा पर निर्भर करती हैं,पहले के जमाने में लोगों के घर में खेती थी,भैंस थी हर कोई इन सभी से परिपूर्ण था तो दूध भी आपस में बांट कर पी किया करते थे लेकिन आज परिस्थितिया बिल्कुल विपरीत हैं,पैसा से इलाज संभव है,पैसा से यात्राएं संभव है,पैसा से अच्छी शिक्षा सम्भव है,पैसा से अच्छा खाना संभव है,पैसा से सुगमता संभव है अतः इससे आपको पता लग गया होगा कि पैसा ही सबकुछ है बड़े बड़े बाबा भी चमत्कार का पैसा ही कमाते हैं इसलिए बड़े बुजुर्ग कहते हैं पैसा है तो ,सब है पैसा कमाओ मौज उड़ाओ |

