छठ पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी को मनाया जाने वाला आस्था का पर्व है |
यह पर्व चार दिनों तक चलता है,जिसके पीछे पौराणिक कहानी है |
दीपावली के ठीक 6 दिन बाद इस छठ पूजा की शुरुआत होती है |
पौराणिक कहानियों के अनुसार त्रेतायुग में माता सीता और द्वापर युग में द्रौपदी ने छठ पूजा व्रत रखकर सूर्य देवता को अर्घ्य दिया था |
आइए जानते हैं इस पर्व का इतिहास,महत्व,और लोगों में इस पर्व को लेकर आस्था :

भारत धार्मिक परंपराओं और सनातन संस्कृति से जुड़ा देश है,जहां हर धर्म का व्यक्ति निवास करता है,जहां हर व्यक्ति एक दूसरे धर्म का सम्मान करता है,यही कारण है कि भारत धर्म निरपेक्ष देशों में विश्व में अपना अहम स्थान रखता है,अभी कुछ ही दिन बीते हैं भारत में दीपावली का पर्व बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया गया जिसके साथ श्रीकृष्ण भगवान से जुड़े गोवर्धन पूजा,भैया की लंबी उम्र की कामना करने के लिए भैया दूज जैसे त्यौहार खत्म हुए हैं,ठीक उसके 6 दिन बाद ही एक और पर्व भारत में अलग महत्व रखता है वो है छठ पूजा पर्व तो आज हम इसके बारे में विस्तार से जानेंगे कि क्या है इसका इतिहास,क्यों महिलाएं इतनी कठोर तपस्या करती हैं,आखिर यह बिहार,दिल्ली,झारखंड,उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में इतना महत्व क्यों रखता है ?

छठ पूजा की पौराणिक कहानी : छठ पर्व या षष्ठी पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष को मनाया जाता है,यह पर्व दिवाली के 6 दिन बाद शुरू हो जाता है,इस साल छठ पूजा 5 नवंबर से नहाए -खाए के साथ शुरू हुआ और इसके साथ यह पर्व 4 दिनों तक चलकर खरना, संध्या अर्घ्य,प्रातः कालीन अर्घ्य के साथ 8 नवंबर को समाप्त हो जाएगा |
छठ पूजा से जुड़ा किस्सा :
पौराणिक कथा के अनुसार,राजा प्रियवत बहुत दुखी थे,क्योंकि उन्हें कोई भी संतान की प्राप्ति नहीं हुई थी| उन्होंने महर्षि कश्यप को अपनी इस समस्या से अवगत कराया | महर्षि कश्यप ने उन्हें एक यही अर्थात पुत्रेष्टि यज्ञ कराने की सलाह दी | यज्ञ के दौरान,आहुति,के लिए बनाई गई खीर रानी मालिनी को खाने के लिए दी गई |खीर खाने के उपरांत रानी गर्भवती हो गई और उन्होंने एक पुत्र को जन्म दिया | लेकिन दुर्भाग्य से बच्चा मृत पैदा हुआ |
राजा प्रियवत पुत्र के शव को लेकर श्मशान घाट गए और दुख में डूबकर अपने प्राण त्यागने ही वाले थे कि तभी ब्रह्मा जी की मानस पुत्री देवी षष्ठी प्रकट हुईं | देवी ने राजा से कहा ” मै सृष्टि की मूल प्रवृति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हूं,इसलिए मेरा नाम षष्ठी है,तुम मेरी पूजा अर्चना करो और लोगों में इसका प्रचार प्रसार करो |
देवी षष्ठी के कहने पर,राजा प्रियवत ने कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को विधि विधान से उनका व्रत किया | देवी की कृपा से उन्हें बहुत जल्द ही एक स्वस्थ पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई | राजा ने पुत्र को प्राप्त करने के बाद नगरवासियों को षष्ठी देवी का प्रताप बताया | तब से षष्ठी देवी की आराधना और उनके व्रत की शुरुआत हुई | तो यह थी छठ पूजा मनाने की पौराणिक वजह |

आखिर कहां कहां मनाया जाता है यह पर्व : यह पर्व मनाया तो पूरे देश में जाता है लेकिन देखा गया है कि यह पर्व बिहार,झारखंड और पूर्वांचल का मुख्य पर्व है,दिल्ली में जो। लोग बिहार से हैं या फिर झारखंड, से है वे यमुना नदी के तट पर मां षष्ठी की पूजा अर्चना करते हैं,और जो लोग गंगा किनारे आकर रहने लगे हैं वे मां गंगा किनारे पूजा अर्चना करते हैं | यह पर्व इतने बहुत ही पवित्रता पूर्वक मनाया जाता है,दिल्ली में लोग अक्सर यमुना नदी के प्रदूषित पानी से परेशान होते नजर आए हैं लेकिन प्रदूषण पर आस्था हर बार भारी पड़ती है |
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